श्रीमद्भागवत कथा में छठवें दिन हुआ कृष्ण और रुक्मणी का विवाह

बस्ती। दुबौलिया विकासखंड के ग्राम पंचायत बर्दिया कुंवर रमना तौफिर में
श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है।

इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ्य को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।
यह कहना है कथावाचक
राष्ट्रीय संत राम मणि शास्त्री जी श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन गोवर्धन पूजा, छप्पन भोग, महारास लीला, रासलीला में भगवान शंकर का आना एवं श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह के प्रसंग का सुन्दर वर्णन किया। वास्तविकता में श्रीकृष्ण केवल ग्वाल-बालों के सखा भर नहीं थे, बल्कि उन्हें दीक्षित करने वाले जगद्गुरु भी थे। श्रीकृष्ण ने उनकी आत्मा का जागरण किया और फिर आत्मिक स्तर पर स्थित रहकर सुन्दर जीवन जीने का अनूठा पाठ पढ़ाया। भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रासलीला का वर्णन करते हुए बताया कि रास तो जीव से शिव के मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है।
कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हुआ। भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनन्दित किया। रुक्मणी विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान कथा मण्डप में विवाह सम्पन्न होते ही चारों तरफ से श्रीकृष्ण-रुक्मणी पर जमकर फूलों की बरसात हुई।

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