संत कबीर नगर, /भारत का सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन, व्यापक और वैज्ञानिक जीवन दर्शन है, जिसकी जड़ें प्रेम, करुणा, समरसता और सत्य पर आधारित हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, कुछ अवसरवादी राजनीतिज्ञों की वजह से आज उसी धर्म के अनुयायी जातियों के नाम पर एक-दूसरे से संघर्ष कर बैठे हैं। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जो धर्म “वसुधैव कुटुम्बकम्” का पाठ पढ़ाता है, उसी धर्म के अनुयायी आज “मैं ब्राह्मण”, “मैं क्षत्रिय”, “मैं दलित” की दीवारों में उलझे हुए हैं। वर्तमान समय में राजनीतिक दलों के लिए जातियां एक वोट बैंक बन चुकी हैं। वे जान-बूझकर समाज को जातियों में बांटते हैं, और इस बंटवारे की आड़ में सनातन धर्म की एकता को खोखला करते हैं। नारा दिया जाता है: “आपकी जाति का नेता चाहिए”, जबकि धर्म कहता है: “कर्म ही धर्म है।” भगवान श्रीराम हों या भगवान कृष्ण उन्होंने कभी किसी को जाति के आधार पर नहीं बांटा। वाल्मीकि, शबरी, रैदास, कबीर जैसे संतों ने समाज को जोड़ने का काम किया। फिर क्यों आज उनके अनुयायी जाति के नाम पर एक-दूसरे को अपमानित कर रहे हैं? जातीय मतभेद न केवल सामाजिक सद्भाव को नष्ट करता है बल्कि धर्म की आत्मा को भी आहत करता है मंदिरों में एक साथ पूजा करने वाले धार्मिक आयोजनों में एक साथ बैठने वाले लोग अगर जाति के नाम पर एक दूसरे से दूरी बना लेंगे तेरा धर्म की हार होगी और अज्ञानता की जीत होगी। वास्तव में सनातन धर्म की रक्षा करनी है तो पहले अपनी सोच बदलनी होगी धर्म का मतलब मंदिर जाना या व्रत करना नहीं बल्कि हर जीव में भगवान का दर्शन करना होता है जब तक हम एक दूसरे को सम्मान नहीं देंगे तब तक धर्म के मूल उद्देश्य अधूरे रह जाएंगे। एकता की राह आसान नहीं होती लेकिन यही रह सनातन धर्म की सच्ची सेवा है हम सबको संकल्पित होना पड़ेगा कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए सनातन धर्म की आत्मा को कलंकित नहीं होने देंगे यही एकता आने वाली पीढियां को गर्भ के साथ विरासत में दी जानी चाहिए।