लेख…
लव जिहादियों के निशाने पर मध्यप्रदेश की बेटियां!
क्या फिर से घरों में लौट जाएंगी आत्मविश्वास से भरी स्त्रियां?
-प्रो.संजय द्विवेदी
समाज, शिक्षण संस्थानों और सरकार के तंत्र पर बहुत गहरे भरोसे पर ही ‘साधारण लोग’ अपनी बेटियों को कस्बों,शहरों, महानगरों में पढ़ने या नौकरी करने के लिए भेजने लगे हैं। यह बिल्कुल बदले हुए माता-पिता हैं,जो अभावों में रहते हैं लेकिन अपनी बच्चियों के सपनों में बाधक नहीं बनना चाहते हैं।
बदलते हुए समय में सरकारें भी ‘बेटी बचाओ -बेटी पढ़ाओ’ के नारे लगा रही हैं। स्त्रियों के लिए अनेक प्रोत्साहनकारी योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। उन्हें आरक्षण, साईकिल देने से लेकर फीस माफी जैसे तमाम प्रयास हो रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और कई स्थानों से आ रही खबरों से कलेजा फट जाता है। मुस्लिम युवकों का एक संगठित गिरोह लड़कियों से धोखाधड़ी कर उनके अश्लील वीडियो बनाता है, मारपीट करता है, नशाखोरी कर देह शोषण करता है। इस काम में मददगारों की पूरी चेन शामिल है। आखिरी हमारी बेटियां कहां जाएं? किस भरोसे पर उन्हें आकाश में उड़ने की आजादी दी जाए? मैं अखबारों में छपे आरोपी के बयान से हतप्रभ हूं, जिसमें वह अपने कुकृत्यों को ‘सबाब'(पुण्य कार्य) बता रहा है। यह कैसी दुनिया और कैसा असभ्य समाज हम बना रहे हैं। वो कौन लोग , विचार और मानसिकताएं हैं,जो युवाओं में अन्य धर्मावलंबियों के प्रति ऐसी भावनाएं भर रही हैं। हालांकि भोपाल के शहर काजी और अन्य मुस्लिम धर्मगुरुओं ने आगे आकर इन घटनाओं की निंदा की है और इसे इस्लाम विरोधी कृत्य बताया है। किंतु घटना में शामिल आरोपियों पर अपने किए पर कोई हिचक नहीं है और हर दिन एक नया मामला पेश हो जाता है।
धोखाधड़ी, मारपीट बलात्कार और उसके वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करना अगर किसी युवा को ‘सबाब’ का काम लगता है,तो ऐसे मनोविकारियों का इलाज क्या है? क्या ऐसी मानसिकता के लोग किसी सभ्य समाज में रहने योग्य हैं? भोपाल की घटना न देश की अकेली है, न पहली। केरल से बहुचर्चित हुआ शब्द ‘लव जिहाद’ अब एक सच्चाई है। फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ इसे विस्तार से बताती है। भोपाल इन कहानियों का गवाह रहा है। यहां तक कि भोपाल के एक महाविद्यालय को भी कुछ साल पहले सरकार को इन्हीं कारणों से स्थानांतरित करना पड़ा। दो विपरीत पंथ को मानने वाले युवाओं का दिल मिल जाना, शादी हो जाना बहुत सामान्य बात है। संकट यह है कि धोखाधड़ी, पहचान छिपाकर रिश्ते बनाने के लिए मजबूर करने वाली मानसिकता कहां से आती है? जैसा कि भोपाल का एक आरोपी कहता है “उसे पता होता तो वह लड़कियों का वीडियो वायरल कर देता।” यह दुस्साहस और मनोविकार कैसे आता है, इसे समझना जरूरी है।
स्त्रियों की सुरक्षा का मुद्दा –
हमारे समाज में लंबी गुलामी के कालखंड कारण स्त्रियां पर्दा, अशिक्षा और उपेक्षा की जकड़नों में रहीं। आजादी के इन सालों में आए परिवर्तन में वह हर क्षेत्र में खुद को साबित कर चुकी हैं। अपनी योग्यता से उसने यह सिद्ध कर दिया है कि वह किसी मायने में कम नहीं। सफलता की इन कहानियों ने माता-पिता और समाज को भी बदला है। गांव-गांव से, कस्बों से अभिभावक बेटियों को पढ़ने और अपने सपनों में रंग भरने के लिए बाहर भेज रहे हैं। ऐसी घटनाएं महिलाओं के सशक्तिकरण की रफ्तार में कुछ कमी ला सकती हैं। इसलिए समूचे समाज को ऐसी घटनाओं के विरुद्ध एकजुट होकर प्रतिरोध करना चाहिए। राजनीति दलों, सामाजिक संगठनों, सभी धर्मों और पंथों के अग्रणी जनों को सामने आकर इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के संस्थागत उपायों पर बात करनी चाहिए।
अश्लील सामग्री मुक्त भारत बने
मोबाइल संचार के माध्यम से अश्लील सामग्री का कारोबार चरम पर है। भारत को अश्लील सामग्री मुक्त देश बनाने के लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है। ऐसी सामग्री निर्मित करने और और उसका प्रसारण करने वालों के लिए कड़े प्रावधान हों। क्योंकि यह देश के बेटी-बेटियों और बच्चों के भविष्य का सवाल है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ मोबाइल के उचित-अनुचित प्रयोगों पर चर्चा करें। उन्हें समय दें और मोबाइल को ही उनका शिक्षक और मित्र न बनने दें। छोटी बच्चियों के साथ यौन अपराध की घटनाएं बता रही हैं कि हमारे समाज में विकार कितना बढ़ गया है।
भोपाल की घटना के सबक–
भोपाल की घटना नशाखोरी, धोखाधड़ी,पांथिक उन्माद, अश्लील वीडियो, संगठित अपराध और मनोविकार का संयुक्त उदाहरण है। इस घटना के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग भी सक्रिय हुए हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने लव जिहाद से जुड़े मामलों की जांच हेतु एसआईटी गठित कर दी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भोपाल एक ऐसा उदाहरण बनेगा कि जिससे स्त्री सुरक्षा की नई राह प्रशस्त होगी। पांथिक उन्मादियों और विकृत मानसिकता से भरे युवकों को कठोर संदेश देना बहुत जरूरी है। वरना ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ के संकल्प जुमले रह जाएंगे। इतिहास की लंबी गुलामी के अंधेरे को चीर कर भारतीय स्त्री एक बार फिर अपने सामर्थ्य की कथा लिख रही है, उसे फिर चाहारदीवारियों में कैद करने को कुत्सित प्रयासों को सफल न होने देना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान- (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक हैं।)