संस्कार, धर्म और सेवा की प्रतिमूर्ति को परिजनों ने किया नमन, आयोजित हुई श्रद्धांजलि सभा
देवरिया। स्व. भृगुनाथ प्रसाद बरनवाल की द्वितीय पुण्यतिथि पर मंगलवार को राघव नगर स्थित एक उत्सव सभागार में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को याद करते हुए वक्ताओं ने उन्हें दृढ़ निष्ठा, सहयोगी स्वभाव, विनम्र व्यवहार और धार्मिक चेतना का प्रतीक बताया।
सभा की अध्यक्षता समाजसेवी श्यामसुंदर भगत ने की, जबकि पूर्व विधायक रवीन्द्र प्रताप मल्ल, सदर विधायक शलभमणि त्रिपाठी और डा० राजेश कुमार बरनवाल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। सभा का संचालन डॉ0 रविकान्त मणि त्रिपाठी ने किया। वहीं प्रसिद्ध लोकगायिका पूनम मणि त्रिपाठी ने भजन प्रस्तुत किया।
परिजनों की ओर से डॉ. घनश्याम बरनवाल, अरुण कुमार बरनवाल, अरविन्द कुमार बरनवाल, राजीव कुमार बरनवाल, संजय कुमार बरनवाल, आशीष कुमार बरनवाल, मयूर बरनवाल, मधुर बरनवाल, शाश्वत बरनवाल, प्रतीक बरनवाल, श्रेयांस बरनवाल, हर्षित बरनवाल और आर्यान्श बरनवाल सहित अन्य स्वजन व श्रद्धालु उपस्थित रहे और श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। इस अवसर पर स्व. बरनवाल के पुत्र अरुण कुमार बरनवाल ने अत्यंत भावुक शब्दों में कहा कि, बाबूजी ने हमें न केवल जीवन जीने की कला सिखाई, बल्कि यह भी सिखाया कि सेवा, त्याग और धर्म को जीवन का मूल बनाना चाहिए। आज भले ही वे हमारे बीच शारीरिक रूप से नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, उनके संस्कार और उनकी छाया हम सबके जीवन में सदा विद्यमान हैं। यह आयोजन केवल एक रस्म नहीं, बल्कि उस अमर विरासत को स्मरण करने का माध्यम है, जिसे बाबूजी ने अपने कर्मों से गढ़ा। हम सब उनके दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं।
श्रद्धांजलि सभा के उपरांत सहभोज का आयोजन भी किया गया, जिसमें नगरपालिका अध्यक्ष अलका सिंह, अखिलेन्द्र शाही, डॉ0 मिथिलेश सिंह, डॉ0 दिवाकर तिवारी, इन्द्र कुमार दीक्षित, राजेन्द्र जायसवाल, पुष्पा बरनवाल, अनिल त्रिपाठी, धीरेन्द्र मणि, कमलेश मित्तल, पुरुषोत्तम मरोदिया, राणाप्रताप सिंह, वकील सिंह, नित्यानन्द यादव, सरोज पाण्डेय, रामप्रवेश भारती, संजय कुमार यादव, कृष्णमोहन गुप्ता सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक, समाजसेवी, रिश्तेदार और शुभचिंतक शामिल हुए। कार्यक्रम की गरिमा और आत्मीय वातावरण ने स्व. बरनवाल के व्यक्तित्व की गहराई को एक बार फिर सबके समक्ष जीवंत कर दिया। वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि बाबूजी के संस्कार हमारी अमूल्य धरोहर हैं, और उनकी धार्मिक भावना आज भी हमारे जीवन की प्रेरक शक्ति बनी हुई है।